जैसे ठहरे हुए जल में कंकर से हलचल होने लगती है। जैसे ठहरे हुए जल में कंकर से हलचल होने लगती है।
मन आज तू कुछ बोल मेरे जज्बातों को फिर टटोल, मन आज तू कुछ बोल मेरे जज्बातों को फिर टटोल,
घर में बैठकर मैं बस बारिश देखता रहता हूँ। घर में बैठकर मैं बस बारिश देखता रहता हूँ।
उसका गीत गाके महफिल सजा लेती हूं ये कविता लिख कर पा लिया करती हूँ उसे उसका गीत गाके महफिल सजा लेती हूं ये कविता लिख कर पा लिया करती हूँ उसे
ऐ ज़िंदगी तू क्या है, आ कुछ लफ़्ज़ों में बयां कर लू; ऐ ज़िंदगी तू क्या है, आ कुछ लफ़्ज़ों में बयां कर लू;
मन के हैं रुप अनेक, भावनाएं बेहिसाब हैं असीम प्रकृति को जी पायें ऐसी मन में कल्पनाएं मन के हैं रुप अनेक, भावनाएं बेहिसाब हैं असीम प्रकृति को जी पायें ऐसी मन म...